शादी का झांसा देकर नाबालिग को बनाया हवस का शिकार, कोर्ट ने सुनाई 20 साल की सजा

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दिल्ली में एक स्थानीय अदालत ने एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले में आरोपी को दोषी ठहराते हुए 20 साल की कठोर करावास की सजा सुनाई है. दोषी ने साल 2022 में इस वारदात को अंजाम दिया था. अदालत ने इस कृत्य को घृणित बताते हुए कहा कि सजा गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिए.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुशील बाला डागर की अदालत में इस मामले की सुनवाई चल रही थी. आरोपी को पहले पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था. इसके अलावा आईपीसी के बलात्कार, अपहरण और शादी के लिए मजबूर करने के प्रावधानों के तहत भी दोषी ठहराया गया था.

अतिरिक्त लोक अभियोजक योगिता कौशिक दहिया राज्य की ओर से अदालत में पेश हुई थीं. अदालत ने कहा, "इस मामले में अपराध की गंभीरता, पीड़िता और दोषी की उम्र, पीड़िता की पारिवारिक स्थिति, उन्हें नियंत्रित करने वाले सामाजिक और आर्थिक कारकों और परिस्थितियों को मद्देनजर रखा गया है.''

अदालत ने अपहरण और एक महिला को शादी के लिए मजबूर करने के अपराध के लिए भी सात-सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई. सोमवार को सुनाए गए अपने फैसले में न्यायाधीश ने कहा कि ये सभी सजाएं एक साथ चलेंगी. सजा नहीं भुगतने की स्थिति में जुर्माने का प्रावधान है.

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5 मार्च, 2022 को नाबालिग लड़की का अपहरण हुआ था. इसके बाद दोषी ने शादी का वादा करके उसके साथ अवैध संबंध बनाया. अदालत ने कहा कि बचपन में यौन शोषण के मनोवैज्ञानिक निशान अमिट होते हैं और वे व्यक्ति को हमेशा सताते रहते हैं, जिससे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास बाधित होता है.

अदालत ने कहा, "ऐसे लोग बाल पीड़ितों को शादी का झांसा देकर अपना शिकार बनाते हैं. इस तरह वे पीड़ित को न सिर्फ पढ़ाई से दूर करते हैं, बल्कि उनका जीवन भी बुरी तरह से प्रभावित करते हैं. इसलिए सजा घृणित कृत्य की गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिए, ताकि समाज में संदेश जा सके.

इतना ही नहीं अदालत ने दिल्ली पुलिस की जांच की निंदा करते हुए कहा कि आईओ बिमलेश पीड़िता का यौन उत्पीड़न करने वाले दोषी की पहली शादी के दस्तावेज एकत्र करने में विफल रही. पुलिस अधिकारी ने उस मंदिर के रजिस्टर की जांच भी नहीं की, जहां नाबालिग की शादी कराई गई थी.

इस मामले में पुलिस की ओर से कई गलतियां की गई हैं, जो दर्शाती हैं कि जांच अधिकारी का आचरण दोषपूर्ण है. जांच अधिकारी के खिलाफ उचित विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की जाती है. हालांकि, सभी खामियों के बावजूद पीड़ित बच्चीकी गवाही मजबूत रही, जिससेदोषी को सजा मिल पाई.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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